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21 पूर्व जजों ने लिखी चीफ जस्टिस को चिट्ठी- न्यायपालिका को कमजोर करने की हो रही है कोशिश!

 15 Apr 2024

सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के  21 अवकाशप्राप्त जजों ने मुख्य न्यायाधीश (सीजीआई) को पत्र लिखा है। इस पत्र में रिटायर्ड जजों ने कहा है कि कुछ गुट दबाव बनाकर, गलत सूचना फैलाकर और सार्वजनिक अपमान करके न्यायपालिका को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं। रिटायर्ड जजों ने लिखा कि हमारे संज्ञान में आया है कि राजनीतिक हितों और व्यक्तिगत लाभ को ध्यान में रखते हुए कुछ लोगों द्वारा इस तरह की हरकत की जा रही है। यह लोग हमारी न्याय प्रणाली के प्रति जनता के विश्वास को कम करने की कोशिश कर रहे हैं।


पत्र में क्या लिखा है

पत्र में 21 जजों ने लिखा है कि गलत सूचनाओं और न्यायपालिका के खिलाफ जनता की भावनाओं को भड़काने को लेकर चिंतित है। यह अनैतिक है और हमारे लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांतों के लिए हानिकारक भी है। जजों की तरफ से लिखी गई चिट्ठी में कहा गया कि कोर्ट द्वारा जो फैसले लिए जाते है, अगर वो किसी के विचारों से मेल खाते है तो उसकी जमकर तारीफ की जाती है। लेकिन जो फैसले लोगों के विचारों से मेल नहीं खाती है, उनकी आलोचना की जाती है। इस तरह की घटना न्यायिक समीक्षा और कानून को कमजोर करती है।


किन जजों ने लिखा पत्र

बता दें कि जिन जजों ने मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ को पत्र लिखा है। उनमें सुप्रीम कोर्ट के 4 रिटायर जज, दीपक वर्मा, कृष्ण मुरारी, दिनेश माहेश्वरी और एमआर शाह शामिल है। वहीं 17 पूर्व जज है जो अलग-अलग हाईकोर्ट में कार्यरत रह चुके है। इन लोगों में एसएम सोनी, अंबादास जोशी, प्रमोद कोहली, एसएन ढींगरा, आरके गौबा, ज्ञान प्रकाश मित्तल, राघवेंद्र सिंह राठौड़, अजीत भरीहोके, रमेश कुमार मेरठिया, राकेश सक्सेना, करमचंद पुरी, नरेंद्र कुमार, एसएन श्रीवास्तव, राजेश कुमार, पीएन रवीन्द्रन, लोकपाल सिंह और राजीव लोचन का नाम शामिल है।

इससे पहले वकील भी लिख चुके है चिट्ठी

इसी साल मार्च में देश के पूर्व सॉलिसिटर जनरल हरीश साल्वे समेत 500 से अधिक वकीलों ने मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ को पत्र लिखा था। इस पत्र में कहा गया था की न्यायपालिका पर दबाव बनाया जा रहा है। न्यायपालिका को राजनीतिक और व्यावसायिक दबाव से बचना होगा। वकीलों ने पत्र में लिखा था, “न्यायिक अखंडता को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है। हम वो लोग है, जो कानून को कायम रखने के लिए काम करते है। हमारा यह मानना है कि हमें अदालतों के लिए खड़ा होना होगा। अब साथ आने और आवाज उठाने का वक्त है। उनके खिलाफ बोलने का वक्त है जो छिपकर वार कर रहे है। हमें निश्चित करना होगा कि अदालतें लोकतंत्र का स्तंभ बनी रहें।”